ये दिल भी कितना नादान है,
पाना उसको नहीं आसान है
दिल इतना क्यों हैरान है
वो जो आई है, दो पल क़ी मेहमान है
एक अजीब सी कशमकश में, उलझा है दिल
उसको कुछ कहू, या होठ लू अपने सिल
उसको सामने देख के दिल क़ी
धड़कने क्यों बढ जाती है
वो जब हँस के इठलाती है
क्यों जल तरंग सी छा जाती है
एक चाँद वहाँ, एक चाँद यहाँ
ये मंज़र देखा करता हूँ
कही तुम कोई सपना तो नहीं
ये सोच के छूने से डरता हूँ
कह नहीं सकता,कुछ तो समझ लो
मेरे दामन को प्यार से भर दो
मेरी साँसों में बस जाओ तुम
मेरे सपनो को दीप्तिमय कर दो.
Friday, October 21, 2011
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